दिल्ली, भारत की राजधानी, सिर्फ अपने ऐतिहासिक स्मारकों और जीवंत संस्कृति के लिए ही नहीं जानी जाती, बल्कि अपनी आधुनिक वास्तुकला के चमत्कारों के लिए भी प्रसिद्ध है। इन्हीं चमत्कारों में से एक है Lotus Temple, जिसे अपनी अनूठी कमल के फूल जैसी डिज़ाइन के कारण यह नाम मिला है। यह सिर्फ एक पूजा स्थल ही नहीं, बल्कि शांति, एकता और भाईचारे का प्रतीक है। हर साल लाखों आगंतुक इस अद्भुत संरचना को देखने आते हैं, इसकी शांतिपूर्ण आभा में डूब जाते हैं और इसकी वास्तुकला की भव्यता से मंत्रमुग्ध हो जाते हैं।
लेकिन क्या आपने कभी सोचा है कि यह अद्भुत मंदिर (Lotus Temple) कैसे अस्तित्व में आया? इसका निर्माण किसने करवाया? और इसके पीछे का दर्शन क्या है? इस ब्लॉग पोस्ट में, हम आपको लोटस टेम्पल के इतिहास की गहराई में ले जाएंगे, इसकी स्थापना से लेकर इसके निर्माण की प्रक्रिया तक, और उन महत्वपूर्ण पहलुओं को उजागर करेंगे जो इसे दिल्ली के सबसे प्रतिष्ठित स्थलों में से एक बनाते हैं। आइए, दिल्ली के लोटस टेम्पल की सम्पूर्ण जानकारी प्राप्त करने के लिए इस लेख को अंत तक पढ़े।
Lotus Temple History
Lotus Temple, जिसे ‘कमल मंदिर’ के नाम से जाना जाता है, भारत की राजधानी नई दिल्ली में स्थित एक विश्व प्रसिद्ध इमारत है। यह बहाई धर्म का उपासना स्थल है, जो अपने अनोखे कमल के आकार के वास्तुशिल्प के लिए प्रसिद्ध है। इसका निर्माण वर्ष 1986 में पूरा हुआ था और इसे ईरानी मूल के कनाडाई वास्तुकार फरिबर्ज़ साहबा द्वारा डिज़ाइन किया गया था। मंदिर का निर्माण कार्य 1978 में शुरू हुआ और इसमें सफेद संगमरमर का उपयोग किया गया है, जो ग्रीस से आयात किया गया था। इस मंदिर में कुल 27 पंखुड़ियाँ हैं जो नौ दिशाओं में तीन-तीन के समूह में फैली हुई हैं, जिससे यह पूरी संरचना एक विशाल खिले हुए कमल की तरह दिखाई देती है।
लोटस टेम्पल (Lotus Temple) का उद्देश्य विभिन्न धर्मों और संप्रदायों के लोगों को एक साथ आने और शांति व एकता के साथ ईश्वर की आराधना करने का अवसर देना है। यहाँ किसी भी मूर्ति की पूजा नहीं होती, और ना ही किसी धार्मिक प्रतीक का उपयोग किया गया है। यह मंदिर बहाई धर्म की मूल भावना को दर्शाता है, जो “एक ईश्वर, एक मानवता और एक धर्म” के सिद्धांत में विश्वास करता है।
लोटस टेम्पल न केवल भारत में बल्कि विश्व स्तर पर भी एक प्रसिद्ध पर्यटन स्थल बन चुका है। इसे स्थापत्य कला का उत्कृष्ट उदाहरण माना जाता है और इसे कई अंतरराष्ट्रीय पुरस्कार भी मिल चुके हैं। हर साल लाखों पर्यटक और श्रद्धालु इस शांतिपूर्ण और सुंदर स्थल का भ्रमण करते हैं। इसकी शांत वातावरण और सुंदरता लोगों को आध्यात्मिक अनुभव प्रदान करती है।
Lotus Temple कैसे अस्तित्व में आया?
लोटस टेम्पल का अस्तित्व में आना बहाई धर्म के प्रसार और एक वैश्विक प्रार्थना स्थल की आवश्यकता से जुड़ा हुआ है। बहाई धर्म, जो 19वीं शताब्दी में ईरान में जन्मा, यह विश्वास करता है कि सभी धर्म एक ही ईश्वर की ओर ले जाते हैं और मानवता एक है। इस विचार को फैलाने और एक सार्वभौमिक प्रार्थना स्थल स्थापित करने की दृष्टि से, भारत में बहाई समुदाय ने एक मंदिर के निर्माण की योजना बनाई।
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इस उद्देश्य के लिए 1976 में दिल्ली में भूमि खरीदी गई, जो कालकाजी मंदिर के पास स्थित थी। इसके बाद ईरानी मूल के वास्तुकार फरिबर्ज़ साहबा को इसकी डिज़ाइन तैयार करने की ज़िम्मेदारी दी गई। उन्होंने भारत की सांस्कृतिक पहचान और बहाई धर्म के सिद्धांतों को ध्यान में रखते हुए मंदिर को कमल के फूल के आकार में डिज़ाइन किया, क्योंकि कमल भारतीय संस्कृति में शुद्धता और शांति का प्रतीक माना जाता है।

इस मंदिर का निर्माण कार्य 1978 में शुरू हुआ और 1986 में पूर्ण हुआ। निर्माण में लगभग 10 वर्षों का समय और विश्वभर से आर्थिक सहयोग प्राप्त हुआ। मंदिर का ढांचा ग्रीस से लाए गए सफेद संगमरमर से तैयार किया गया है, और इसमें किसी भी धर्म विशेष की मूर्तियाँ या चिन्ह नहीं हैं, जो इसे एक सार्वभौमिक प्रार्थना स्थल बनाता है।
इस तरह लोटस टेम्पल अस्तित्व में आया — एक ऐसा स्थान जहाँ कोई भी व्यक्ति, चाहे उसका धर्म, जाति, भाषा या पंथ कुछ भी हो, शांतिपूर्वक प्रार्थना और ध्यान कर सकता है। यह मंदिर न केवल आध्यात्मिकता का प्रतीक है, बल्कि यह एकता, समानता और वैश्विक भाईचारे का संदेश भी देता है।
लोटस टेम्पल का निर्माण किसने करवाया?
लोटस टेम्पल का निर्माण बहाई समुदाय द्वारा करवाया गया था। इसका डिज़ाइन ईरानी मूल के प्रसिद्ध वास्तुकार फरिबर्ज़ साहबा (Fariborz Sahba) ने तैयार किया था। इस मंदिर का निर्माण कार्य 1978 में शुरू हुआ और 1986 में पूर्ण हुआ।
निर्माण कार्य की देखरेख बहाई समुदाय के राष्ट्रीय आध्यात्मिक मंडल (National Spiritual Assembly of the Baháʼís of India) द्वारा की गई। इस परियोजना में भारत सहित दुनिया के कई देशों के बहाई अनुयायियों ने आर्थिक और नैतिक योगदान दिया।
लोटस टेम्पल का निर्माण मुख्य रूप से इसलिए करवाया गया ताकि भारत में बहाई धर्म का एक प्रमुख उपासना स्थल हो, जहाँ सभी धर्मों के लोग आकर शांति, प्रार्थना और एकता के भाव के साथ एकजुट हो सकें। यह मंदिर आज ना केवल बहाई धर्म का प्रतीक है, बल्कि भारत की स्थापत्य कला और सांस्कृतिक समावेशिता का भी अद्भुत उदाहरण है।
निष्कर्ष
दिल्ली का लोटस टेम्पल केवल एक शानदार वास्तुकला का नमूना ही नहीं, बल्कि मानवता की एकता और आध्यात्मिक शांति का एक जीवंत प्रतीक भी है। इसके कमल के फूल जैसे डिज़ाइन से लेकर इसके सर्वधर्म समभाव के मूल सिद्धांत तक, हर पहलू इसे एक अद्वितीय और प्रेरणादायक स्थल बनाता है। हमने इसके निर्माण के पीछे की कहानी, इसके वास्तुशिल्प चमत्कारों और बहाई धर्म के दर्शन को गहराई से समझा है, जो इसे सभी धर्मों के लोगों के लिए एक खुला और स्वागत योग्य स्थान बनाता है।
लोटस टेम्पल हमें याद दिलाता है कि भले ही हमारे विश्वास अलग-अलग हों, फिर भी हम सभी एक साझा मानवता से जुड़े हैं। यह शांति, प्रेम और भाईचारे का एक शक्तिशाली संदेश देता है, जो आज की दुनिया में पहले से कहीं अधिक प्रासंगिक है। यदि आप दिल्ली में हैं, तो इस अद्भुत मंदिर की यात्रा अवश्य करें। इसकी शांतिपूर्ण आभा में कुछ समय बिताएं, इसकी भव्यता को निहारें, और उस आध्यात्मिक ऊर्जा का अनुभव करें जो इसे इतना खास बनाती है। लोटस टेम्पल सिर्फ एक इमारत नहीं, बल्कि एक अनुभव है, जो आपके दिल और दिमाग में एक स्थायी छाप छोड़ जाएगा।